रावण
जिज्ञासा
है,स्वाभिवक है,सबके मन में प्रश्न यही है,
मर कर
भी क्या रावण अब भी यहाँ अमर है?
मेरा तो
विश्वास, देह मर जाया करती,
पर मानव
के कर्म और गुण जिन्दा रहते |
क्रोध,
क्रूरता,लोभ,मोह,मद अगर रहेगा,
ईष्या,अनाचार का चादर जो ओढेगा,
अविवेक,व्यभिचार साथ में जो पालेगा,
तो यह
मानो किसी भेष में,
रावण
जिन्दा बना रहेगा |
रावण के
पुतले को मात्र जला कर हम यह सोचें,
हर
बुराई अब विदा हो रही- तो यह भ्रम है |
कडुवा
सच है, फिर से रावण जन्मेगा हर युग में,
दुष्प्रवृत्ति या अनाचार यदि यहाँ बढ़ेगा अमरबेल सा,
चरित्रहीनता,महिला उत्पीड़न, अहंकार जब भी पनपेगा,
किसी
रूप में तुम यह मानों, रावण जिन्दा बना रहेगा |
डा0 हरिमोहन गुप्त
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